ज्यादा सुखी कौन?
ममता हाउस वाइफ थी, घर का काम निपटा कर बालकनी में बैठी थी। पति ऑफिस और बच्चे स्कूल गए थे। उनके आने से पहले दो पल सुकून के वो खुद के साथ अपने घर की छोटी सी बालकनी में बिताती थी। सामने वाले घर काफी दिनों से बंद था, सुना था कि पुराने मकान मालिक ने बेच दिया था घर क्योंकि वो अपने एकलौते बेटे के साथ यूएस रहने चले गए थे। आज वहाँ एक ट्रक खड़ा था। शायद नए घर वाले लोग आ गए थे। ममता का बहुत मन हुआ कि जा कर उनसे बात करे लेकिन उसने खुद को रोक लिया, कहीं वो लोग उसका आना पसंद ना करें तो?
कुछ दिनों बाद पास की पड़ोसन से पता चला कि नए घर वाली औरत का नाम श्रेया है और वो कामकाजी है। ममता सोचने लगी कि कितनी किस्मत वाली है श्रेया जो की नौकरी करती है। यहाँ मैं तो सारा दिन घर के काम में लगी रहती हूँ। बच्चे आते हैं तो उनके पीछे, पति आते है तो उनके पीछे। उस से कोई ये नहीं पूछता कि उसे क्या चाहिए? बस वो ही सबकी जरूरतों का ख्याल रखती है। उसकी कोई कदर नहीं करता, हाउसवाइफ जो ठहरी। किसी को भी उसके काम की कोई कीमत नहीं है। कोई नहीं समझता उसके जज्बात। मन में खुद को कोसती हुई ममता बालकनी में बैठ कर इसी उधेड़बुन में थी।
शाम को ममता सब्जी लेने के लिए निकली तो उसे एक नया चेहरा दिखा। वो समझ गयी यही श्रेया होगी। उसने बात चीत शुरू की तो पता चला कि दोनों का मायका एक ही है। ममता को श्रेया से अपनापन महसूस हुआ। श्रेया ने ममता को अपने घर का न्यौता दिया और अपने घर चली गयी। ममता बहुत खुश थी कि उसे एक कामकाजी महिला का साथ मिला है। मोहल्ले में ज्यादातर महिलाएं घर पर रहती थी, उनके घर का माहौल अलग था। ममता सोचने लगी कि श्रेया के घर का माहौल अलग होगा।
अगले ही दिन ममता श्रेया के घर पहुंची तो देखा श्रेया का घर बहुत ही साफ़ सुथरा और व्यवस्थित था। ममता मन में सोचने लगी — जरूर काम वाली बाई रखी होगी। श्रेया गरमा गरम चाय पकोड़े लायी और दोनों बैठ कर बातें करने लगी। श्रेया ने ममता से कहा — ‘आप तो बहुत ही खुशकिस्मत हैं जो घर पर रहती हैं। मैं तो थक जाती हूँ काम और घर के बीच सामंजस्य बिठाने में।’ ममता श्रेया की बात सुन कर हैरान हो गयी। फिर से मिलने का वादा कर के दोनों ने विदा ली। घर आकर ममता सोचने लगी चाहे जो भी हो, कदर तो है श्रेया की, आखिर नौकरी करती है वो। घर पर रहने वाली औरत को तो कोई नहीं पूछता।
कुछ दिनों बाद श्रेया और ममता ने एक नियम बनाया कि दोनों शाम में एक घंटे के लिए सैर के लिए जाएंगी। जैसे जैसे दोनों ने एक दूसरे को जाना, दोनों को एहसास हुआ कि दोनों की ज़िन्दगी के दुःख अलग अलग हैं लेकिन परिवार वालों को कदर दोनों की नहीं है। चाहे श्रेया नौकरी करती थी लेकिन उसके परिवार वाले फिर भी यही उम्मीद करते थे कि घर का काम भी वो ही संभाले। उनकी नज़र में वो बस एक औरत थी और एक औरत की जिम्मेदारी है वो अपना घर संभाले, इस में बाई रखने की कहाँ जरुरत है और क्योंकि वो कमाती है तो घर के खर्चे भी वो संभाले।
कहने को तो लोग कहते हैं कि जमाना बदल गया है लेकिन सच यही है कि ज्यादातर घरों में औरतों को आज भी काम वाली बाई ही समझा जाता है चाहे वो हाउस वाइफ हो या नौकरी पेशा। हाउस वाइफ महिलाओं को लगता है कि नौकरी पेशा महिलाओं की ज्यादा कदर है| वहीँ नौकरी पेशा महिलाओं को लगता है कि कमाने की वजह से उन्हें ज्यादा परेशानियां है क्योंकि उन्हें घर भी देखना पड़ता है और बाहर भी। औरत चाहे घर रहती हो या नौकरी करती हो, जिन्हें उनकी कदर करनी होती है, वो करते हैं, उनके लिए ये मायने नहीं रखता कि वो काम करती है या नहीं।
घर के कामों से पैसे नहीं मिलते लेकिन अगर यही काम बाई से करना पड़े तो महंगा पड़ता है। नौकरी पेशा महिला से उम्मीद की जाती है कि वो नौकरी और घर दोनों संभाले लेकिन कभी कोई आदमी से नहीं कहता कि तुम्हारी पत्नी अगर नौकरी करती हुए घर और बाहर दोनों संभाल रही है तो तुम्हें भी घर का आधा काम करना चाहिए।
आज के ज़माने में अगर जरुरत है तो औरत को ये समझने की जब तक वो खुद को मूल्य नहीं देंगी तब तक कोई और भी नहीं देगा। अपनी जगह इस समाज में उन्हें खुद बनानी है।